सूत्र :यत्र संशयस्तत्रैवमुत्तरोत्तरप्रसङ्गः II2/1/7
सूत्र संख्या :7
व्याख्याकार : स्वामी दर्शनानन्द सरस्वती
अर्थ : जहां-जहां संदेह उत्पन्न होता है वहां ही प्रश्नोत्तर के प्रंसग से परीक्षा होती है अर्थात् जबविपक्षी उसका खण्डन करता है तब प्रत्येक सत्ता के मानने वाले को उसे परिमित करना पड़ता है। इससे प्रमाणित होता है कि संसार में प्रश्नोत्तर और परीक्षा को देखकर प्रत्येक मनुष्य को संशय होना प्रतीत होता है। अतएव संशय ही परीक्षा का कारण है। और कोई कार्य बिना कारण के नहीं होता क्योंकि संसार में परीक्षा होती है सब संशय न होता तो संसार में परीक्षा की प्रतीति भी दृष्टिगोचर न होती, क्योंकि प्रत्येक वस्तु की परीक्षा संशय के कारण होती है, अतएव प्रथम ही संशय की परीक्षा की गई। अब आगे प्रमाण आदि परीक्षा लिखी जायेगी।
व्याख्या :
प्रश्न - परीक्षा से क्या लाभ है ?
उत्तर - परीक्षा से प्रत्येक वस्तु का ज्ञान विश्वास पूरित हो जाता है और विश्वास पूरित ज्ञान के होने से उस पर कर्म होता है, और कर्म से फल प्राप्ति होती है। वर्तमान में जो मनुष्य बहुत सी बातों को मानते हुए उस पर कर्म नहीं करते, उसका साफ कारण यह है कि उनके मनुष्यों को उन कार्यों केसुखदायक होने का विश्वास पूरित ज्ञान नहीं, क्योंकि मनुष्य सुख चाहता है और दुःख से बचने की इच्छा करता है। परन्तु विश्वास पूरित ज्ञान के न होने के कारण से बहुत दुःख देने वाले कार्यों का न त्याग करते हैं और न सुखदायक कार्यों को करते हैं। अब विपक्षी प्रमाण की परीक्षा करता है और यह सू़त्र पूर्वपक्ष अर्थात् पाक्षिक