DARSHAN
दर्शन शास्त्र : न्याय दर्शन
 
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सूत्र :अर्थादापन्नस्य स्वशब्देन पुनर्वचनं पुनरुक्तम् II5/2/16
सूत्र संख्या :16

व्याख्याकार : स्वामी दर्शनानन्द सरस्वती

अर्थ : एक अर्थ का जिस शब्द या वाक्य से बोध हो जावे, उसी अर्थ को फिर दूसरे शब्दों या वाक्यों से वर्णन करना पुनरुक्त कहलाता हैं जो दो प्रकार हैं। (1) शाब्दिक पुनरुक्त, (2) आर्थिक पुनरुक्त। जिसमें बार-बार बिना प्रयोजन एक ही शब्दों का प्रयोग किया जाये, वह शाब्दिक पुनरुक्त है। जैसे द्रव्य-द्रव्य, गुण-गुण। जिसमें किन्हीं शब्दों से एक अर्थ कह दिया गया हो, फिर दूसरे शब्दों में उसी अर्थ को कहना आर्थिक पुनरुक्त हैं। जैसे किसी ने कहा जो उत्पन्न होता हैं व अनित्य हैं, इस कहने से यह अपने आप सिद्ध हो गया कि जो उत्पन्न नहीं होता है वह अनित्य हैं, इस अर्थ से सिद्ध हुई बात को फिर कहना आर्थिक पुनरुक्त हैं, इसी को अर्थापत्ति भी कहते हैं। अब अननुभाषण का लक्षण कहते हैं:-

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