सूत्र :हीन-मन्यतमेनाप्यवयवेन न्यूनम् II5/2/12
सूत्र संख्या :12
व्याख्याकार : स्वामी दर्शनानन्द सरस्वती
अर्थ : प्रतिज्ञादि जो पांच वाक्य के अवयव हैं, वाद के समय उनमें से किसी को छोड़ देना सब से यथावसर काम न लेना न्यून नामक निग्रहस्थान हैं। क्योंकि पांचों अवयवों से अर्थ की सिद्धि होती है, इनमें से यदि एक भी छूट जाये तो अर्थ में गड़बड़ हो जाती हैं। अधिक का लक्षण कहते हैं: