सूत्र :परि-षत्प्रतिवादिभ्यां त्रिरभिहितमप्यविज्ञातमविज्ञातार्थम् II5/2/9
सूत्र संख्या :9
व्याख्याकार : स्वामी दर्शनानन्द सरस्वती
अर्थ : वादी जिस बात को ऐसे शब्दों में कहे कि जिनको कोई समझ न सके अर्थात् जो प्रसिद्ध न हो, उनके अप्रसिद्ध होने के कारण या शीघ्र उच्चारण के कारण या कथित शब्दों के वहृर्थ वाचक होने के कारण सभा और प्रतिवादी के तीन बार कहने पर भी यदि वादी का कहना समझ में न आये, तो वादी अविज्ञात निग्रहस्थान में फंस जाता है। क्योंकि इससे यह जाना जाता है कि वादी जिस अर्थ को कहता हैं, उसे खुद नहीं जानता। धूर्तवादी तो ऐसे शब्दों को इसलिए कहता हैं कि कोई उसे न समझ कर उत्तर न दे सके, परन्तु इसका फल उसके लिए उल्टा होता हैं, क्योंकि वह आप अविज्ञातार्थरूप निग्रहस्थान में पड़ जाता है। अब अपार्थक का लक्षण कहते हैं: