सूत्र :प्रकृतादर्थादप्रतिसम्बद्धार्थमर्थान्तरम् II5/2/7
सूत्र संख्या :7
व्याख्याकार : स्वामी दर्शनानन्द सरस्वती
अर्थ : जिस बात के सिद्ध करने की प्रतिज्ञा की गई हो, उसको प्रकृत अर्थ कहते हैं। प्रकृत अर्थ को छोड़कर अन्य अर्थ को जो उससे कुछ सम्बन्ध अर्थ को जो उससे कुछ सम्बन्ध नहीं रखता, कहना अर्थान्तर निग्रहस्थान कहलाता है। जैसे किसी ने कहा कि कार्य होने से शब्द गुण हैं, आकाश में रहता है। इस कथन का प्रकृत अर्थ से कुछ सम्बन्ध न होने से यह अर्थान्तर निग्रह स्थान हैं।
अब निरर्थक का लक्षण कहते हैं: