सूत्र :अविशेषोक्ते हेतौ प्रतिषिद्धे विशेषमिच्छतो हेत्वन्तरम् II5/2/6
सूत्र संख्या :6
व्याख्याकार : स्वामी दर्शनानन्द सरस्वती
अर्थ : अपने पक्ष की पुष्टि में जो सामान्य हेतु दिया गया हो उसके खण्डित होने पर विशेष हेतु की इच्छा करना हेत्वन्तर निग्रहस्थान कहलाता है। जैसे किसी ने कहा कि घट परिमाणवान होने से एक कारण वाला है, इस पर प्रतिवादी कहता है कि यह हेतु ठीक नहीं, क्योंकि अनेक कारण वाले पदार्थों का भी परिमाण देखने में आता हैं, इस पर प्रतिवादी का यह कहना कि आकारवान होने से घड़ा एक कारण वाला है। परिमाण वाला होना पहला हेतु था, उसका खण्डन होने पर वादी ने उसे छोड़कर दूसरा हेतु आकार वाला होना दिया। बस पहले हेतु को छोड़कर दूसरे हेतु की शरण लेना हेत्वन्तर निग्रहस्थान कहलाता है।
अब अर्थान्तर का लक्षण कहते हैं: