DARSHAN
दर्शन शास्त्र : न्याय दर्शन
 
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सूत्र :प्रतिज्ञाहेत्वोर्विरोधः प्रतिज्ञाविरोधः II5/2/4
सूत्र संख्या :4

व्याख्याकार : स्वामी दर्शनानन्द सरस्वती

अर्थ : प्रतिज्ञा और हेतु के विरोध से प्रतिज्ञाविरोध निग्रहस्थान होता हैं, जैसे किसी ने प्रतिज्ञा की कि द्रव्य गुण से भिन्न है, इस पर यह हेतु दिया कि रूपादि से अतिरिक्त किसी वस्तु की उपलब्धि न होने से। यहां पर प्रतिज्ञा और हेतु दोनों परस्पर विरुद्ध हैं। क्योंकि यदि द्रव्य से भिन्न गुण हैं तो रूपादि से अतिरिक्त वस्तु की अनुपलब्धि होना ठीक नहीं और जो रूपादिकों से भिन्न अर्थ की अनुपलब्धि हो द्रव्य गुण से भिन्न हैं, यह कहना नहीं बन सकता। दोनों में विरोध होने से प्रतिज्ञाविरोध निग्रहस्थान होता है। अब प्रतिज्ञासन्यास का लक्षण कहते हैं:

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