सूत्र :पक्षप्रतिषेधे प्रतिज्ञातार्थापनयनं प्रतिज्ञासंन्यासः II5/2/5
सूत्र संख्या :5
व्याख्याकार : स्वामी दर्शनानन्द सरस्वती
अर्थ : जो प्रतिज्ञा की हो उसका खण्डन होने पर उसको छोड़ देना प्रतिज्ञासन्यास कहलाता हैं। जैसे किसी ने कहा कि इन्द्रिय का विषय होने से शब्द अनित्य है। इस पर प्रतिवादी ने कहा कि जाति भी इन्द्रिय का विषय है परन्तु वह नित्य हैं: इसको सुन कर वादी कहने लगे कि कौन कहता है कि शब्द अनित्य है। यह प्रतिज्ञासन्यासनामक निग्रहस्थान है।
अब हेत्वन्तर का लक्षण कहते है: