DARSHAN
दर्शन शास्त्र : न्याय दर्शन
 
Language

Darshan

Adhya

Anhwik

Shlok

सूत्र :प्रतिज्ञाहानिः प्रतिज्ञान्तरं प्रतिज्ञाविरोधः प्रतिज्ञासंन्यासो हेत्वन्तरमर्थान्तरं निरर्थकमविज्ञातार्थमपार्थकमप्राप्तकालं न्यूनमधिकं पुनरुक्तमननुभाषणम-ज्ञानमप्रतिभा विक्षेपो मतानुज्ञा पर्यनुयोज्योपेक्षणं निरनुयोज्यानुयोगोऽप-सिद्धान्तो हेत्वाभासाश्च निग्रहस्थानानि II5/2/1
सूत्र संख्या :1

व्याख्याकार : स्वामी दर्शनानन्द सरस्वती

अर्थ : पहले अध्याय में यह कह चुके हैं कि विप्रतिपत्ति और अप्रतिपत्ति इन दोनों के विकल्प से बहुत से निग्रह उत्पन्न होते हैं। निग्रहस्थान उनको कहते हैं कि जिनमें पड़ कर वादी और प्रतिवादी निगृहीत (परास्त) हो जाते है। अतएव वादी और प्रतिवादी के लिए उनका जानना परमावश्यक है। अब इस आन्हिक में उनके भेद और लक्षण बतलाये जाते हैं: 1. सब निग्रहस्थान 26 है, जिनका विवरण इस प्रकार हैं: 1 - प्रतिज्ञाहानि 2 - प्रतिज्ञान्तर 3 - प्रतिज्ञा विरोध 4 - प्रतिज्ञा सन्यास 5 - हेत्वन्तर 6 - अर्थान्तर 7 - निरर्थक 8 - अविज्ञातार्थ 9 - अपार्थक 10 - अप्राप्तकाल 11 - न्यून 12 - अधिक 13 - पुनरुक्त 14 - अननुभाषण 15 - अज्ञान 16 - अप्रतिभा 17 - विक्षेप 18 - मतानुज्ञा 19 - पर्यनुयोज्योपेक्षण 20 - निरनुयोज्यानुयोग 21 - अपसिद्धान्त और 5 हेत्वाभास। ये सब मिलकर 26 होते है। इनके लक्षण और उदाहरण पृथक-पृथक वर्णन करते है। प्रथम प्रतिज्ञाहानि का लक्षण करते हैं:

A PHP Error was encountered

Severity: Notice

Message: fwrite(): write of 34 bytes failed with errno=122 Disk quota exceeded

Filename: drivers/Session_files_driver.php

Line Number: 263

Backtrace:

A PHP Error was encountered

Severity: Warning

Message: session_write_close(): Failed to write session data using user defined save handler. (session.save_path: /home2/aryamantavya/public_html/darshan/system//cache)

Filename: Unknown

Line Number: 0

Backtrace: