सूत्र :प्रतिषेधं सदोषमभ्युपेत्य प्रतिषेधविप्रतिषेधे समानो दोष-प्रसङ्गो मतानुज्ञा II5/1/42
सूत्र संख्या :42
व्याख्याकार : स्वामी दर्शनानन्द सरस्वती
अर्थ : खण्डन अर्थात् दूसरे पक्ष को सदोष मानकर खण्डन के खण्डन में अर्थात् तीसरे पक्ष में भी दोष देना मतानुज्ञा नाम निग्रह स्थान है जिसका वर्णन अगले आन्हिक में आवेगा। यह पांचवा पक्ष है।
अब इस आन्हिक के अन्तिम सूत्र से उपसंहार करते हैं:-