DARSHAN
दर्शन शास्त्र : न्याय दर्शन
 
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सूत्र :प्रतिषेधविप्रतिषेधे प्रति-षेधदोषवद्दोषः II5/1/41
सूत्र संख्या :41

व्याख्याकार : स्वामी दर्शनानन्द सरस्वती

अर्थ : जैसे प्रतिषेधों में अनैकान्तिकत्व दोष है, ऐसे ही प्रतिषेधों के खण्डन में भी इस दोष की प्रसक्ति होती है। जैसे ‘कार्य होने से शब्द अनित्य है‘ यह पहला पक्ष है। ‘कार्य के अनेक प्रकार का होने से इसमें कार्यसम दोष है, यह दूसरा पक्ष है। ‘दोनो पक्षों में व्यभिचार दोष बराबर हैं, यह तीसरा पक्ष है। ‘खण्डन के खण्डन में भी वही दोष हैं‘ यह चैथा पक्ष है।अब पांचवा पक्ष कहते हैं:-

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