सूत्र :सर्वत्रैवम् II5/1/40
सूत्र संख्या :40
व्याख्याकार : स्वामी दर्शनानन्द सरस्वती
अर्थ : यह अनैकान्तिकत्वदोष जो कार्यसम में दिखलाया है, किन्तु सब जाति भेदों में इसकी प्रसक्ति होती है, अतएव सब अप्रमाण है। इनके प्रतिषेध में भी यही दोष प्रसक्त होता हैं:-