सूत्र :कार्यान्यत्वे प्रयत्नाहेतुत्वमनुपलब्धिकारणोपपत्तेः II5/1/38
सूत्र संख्या :38
व्याख्याकार : स्वामी दर्शनानन्द सरस्वती
अर्थ : प्रयत्नजन्य होने से शब्द की उत्पत्ति और उसका कार्य होना सिद्ध है, जहां प्रयत्न के पश्चात् अभिव्यक्ति होती है, वहां आवरण अनुपलब्धि का कारण होता है, उस आवरण के हटाने से कार्य की अभिव्यक्ति होती हैं, परन्तु जहां उत्पत्ति होती है, वहां आवरण का अभाव है। शब्द की अभिव्यक्ति नहीं होती, क्योंकि उच्चारण से पहले न कहीं शब्द था और न कोई उसका आवरण था। इसलिए कार्यसम प्रतिषेध अनैकान्तिक होने से अयुक्त है।
प्रतिवादी फिर कहता हैं:-