सूत्र :प्रयत्नकार्यानेकत्वा-त्कार्यसमः II5/1/37
सूत्र संख्या :37
व्याख्याकार : स्वामी दर्शनानन्द सरस्वती
अर्थ : प्रयत्न के पश्चात् उत्पन्न होने के कारण शब्द अनित्य है, इस प्रतिज्ञा पर यह कहना कि प्रयत्न के कार्य अनेक हैं अर्थात् प्रयत्न के पश्चात् किन्हीं पदार्थों की उत्पत्ति होती है, किन्हीं की अभिव्यक्ति। इसलिए प्रयत्नजन्य होने पर भी शब्द की उत्पत्ति ही क्यों मानी जाय, अभिव्यक्ति क्यों न मानी जाय। क्योंकि प्रयत्न के कार्य अनेक प्रकार के होते हैं। कार्य के अनेकत्व से कार्यसम दोष होता है। इसका उत्तर देते हैं:-