सूत्र :प्रतिषेध्ये नित्यम-नित्यभावादनित्येऽनित्यत्वोपपत्तेः प्रतिषेधाभावः II5/1/36
सूत्र संख्या :36
व्याख्याकार : स्वामी दर्शनानन्द सरस्वती
अर्थ : शब्द की अनित्यता को स्वीकार करके फिर उसको नित्य बतलाना ठीक नहीं। क्योंकि नित्यत्व का अनित्यत्व हेतु नहीं हो सकता और हेतु के अभाव में साध्य सिद्ध नहीं हो सकता। उत्पन्न होकर शब्द के नष्ट होने से उसका अनित्य होना सिद्ध है, फिर यह प्रश्न करना कि शब्द में अनित्यत्व नित्य है वा अनित्य ? नहीं बन सकता। क्योंकि जब अनित्यत्व अभाव है तो फिर उसका भाव कैसा ? अतएव नित्यसम दोष अयुक्त है।
अब कार्यसम का लक्षण कहते हैं:-