सूत्र :नित्यमनित्यभावादनित्ये नित्यत्वोपपत्तेर्नित्यसमः II5/1/35
सूत्र संख्या :35
व्याख्याकार : स्वामी दर्शनानन्द सरस्वती
अर्थ : नित्य में अनित्य की ओर अनित्य में नित्य की भावना करने से नित्यसम प्रत्यवस्थान होता है। शब्द अनित्य है, यह जो वादी की प्रतिज्ञा है, इस पर प्रतिवादी कहता है कि शब्द में अनित्यपन नित्य हैं या अनित्य। यदि कहो कि नित्य है तो गुण के नित्य होने से गुणी भी नित्य होगा। और यदि अनित्य कहोगे तो अनित्यत्व के अनित्य होने से शब्द नित्य हो जायगा।
इसका खण्डन करते हैं:-