सूत्र :तदनुपलब्धेरनुपलम्भादभावसिद्धौ तद्विपरीतोपपत्तेरनुपलब्धिसमः II5/1/29
सूत्र संख्या :29
व्याख्याकार : स्वामी दर्शनानन्द सरस्वती
अर्थ : प्रतिवादी कहता है कि यदि आवरण के प्रत्यक्ष न होने से उसका अभाव मानते हो तो उसके अभाव के प्रत्यक्ष न होने से उसके अभाव का भी मानना चाहिए। आवरण के अभाव का अभाव सिद्ध होने से आवरण का भाव सिद्ध हो जाएगा। और जब आवरण का भाव सिद्ध हो गया, तब शब्द भी नित्य सिद्ध हो जायगा। इस प्रकार अभाव का अभाव मानकर दूषण देना अनुपलब्धिसम प्रत्यवस्थान कहलाता है। अब इसका उत्तर देते हैं:-