सूत्र :प्रतिपक्षात्प्र-करणसिद्धेः प्रतिषेधानुपपत्तिः प्रतिपक्षोपपत्तेः II5/1/17
सूत्र संख्या :17
व्याख्याकार : स्वामी दर्शनानन्द सरस्वती
अर्थ : दोनों के साधर्म्य से प्रकिया की सिद्धि होने में दोनों में से एक ही पक्ष सिद्ध होगा, दोनों तो सिद्ध हो ही नहीं सकते। दोनों में से जो सच्चा पक्ष हैं, उसका खण्डन प्रकरणसम नहीं कर सकता। क्योंकि जब तक अनुसंधान से तत्व का अवधारण नहीं होता तभी तक प्रकिया रहती है, तत्व का निश्चय हो जाने पर फिर प्रकिया नहीं रहती। इसलिए प्रकरणसम दोष अयुक्त है।
व्याख्या :
प्रश्न - यह कहना कि दोनों पक्षों में से एक ही पक्ष सत्य होगा, ठीक नहीं मालूम होता। सम्भव है कि दोनों पक्ष सच्चे हों। यदि कहो कि दोनों का सत्य होना असम्भव है, क्योंकि सत्य एक ही होता हैं तो दोनों का मिथ्या होना तो सम्भव है। क्योंकि मिथ्या अनेक हो सकते हैं ?
उत्तर - यह नियम अविरुद्ध पक्षों में है, जहां परस्पर विरुद्ध दो पक्ष हों अर्थात् एक कहता है कि आत्मा नित्य है और दूसरा कहता है कि आत्मा अनित्य है तो यहां एक ही पक्ष सत्य होगा। या तो आत्मा का नित्य होना या अनित्य होना। यह नहीं हो सकता कि आत्मा नित्य भी हो और अनित्य भी। अब अहेतुसम का लक्षण कहते हैं:-