सूत्र :एक-धर्मोपपत्तेरविशेषे सर्वाविशेषप्रसङ्गात्सद्भावोपपत्तेरविशेषसमः II5/1/23
सूत्र संख्या :23
व्याख्याकार : स्वामी दर्शनानन्द सरस्वती
अर्थ : किसी एक धर्म के सादृश्य से दो पदार्थों को अविशेष (एक) ही मानना अविशेषसम दोष कहलाता है। जैसे शब्द और घट में उत्पन्न होना धर्म बराबर है, इससे इनको एक ही समझ लेना और अस्तित्व धर्म सब पदार्थों में बराबर हैं, इसलिए सबको एक ही समझकर दूषण देना अविशेषसम प्रतिषेध है। अब इसका उत्तर देते हैं:-