सूत्र :साधर्म्यात्संशये न संशयो वैधर्म्या-दुभयथा वा संशयेऽत्यन्तसंशयप्रसङ्गो नित्यत्वानभ्युपगमाच्च सामान्यस्या-प्रतिषेधः II5/1/15
सूत्र संख्या :15
व्याख्याकार : स्वामी दर्शनानन्द सरस्वती
अर्थ : साधर्म्य से संशय होता हैं, जैसे स्थाणु और पुरुष में साधर्म्य होने से संशय उत्पन्न होता है, परन्तु वैधर्म्य से जब उनके विशेष धर्मों का भेद मालूम होता हैं, तब संशय निवृत्त हो जाता है। ऐसे ही किया जो शब्द का कारण है, उससे उत्पन्न हुए कार्य शब्द के अनित्य होने में वैधर्म्य के कारण ही जो सामान्य जाति से उसका है, सन्देह उत्पन्न नहीं होता। यदि वैधर्म्य के होने पर भी सन्देह माना जावे तो फिर सन्देह की कोई सीमा न रहेगी। अतएव शब्द के विशेष धर्म का ज्ञान होने से नित्यत्व की आशंका न रहेगी। क्योंकि जब तक स्थाणु और पुरुष के साधर्म्य का ज्ञान हैं, तभी संशय है, जहां इनके वैधर्म्य का ज्ञान हुआ, फिर संशय रह नहीं सकता। अतएव संशयसम प्रतिषेध अयुक्त है।
अब प्रकरणसम का लक्षण कहते हैं:-