सूत्र :सामान्यदृष्टान्तयोरैन्द्रियकत्वे समाने नि-त्यानित्यसाधर्म्यात् संशयसमः II5/1/14
सूत्र संख्या :14
व्याख्याकार : स्वामी दर्शनानन्द सरस्वती
अर्थ : संशय को हेतु मानकर जिसका खण्डन किया जाय, उसको संशयसम कहते है। जैसे यह कहने पर कि घटादि अनित्य कार्यों के सदृश किया से उत्पन्न होने के कारण शब्द अनित्य है। प्रतिवादी यह दूषण दे कि सामान्य गौ जाति में और घटादि कार्य में इन्द्रिय गोचर होना धर्म बराबर है अर्थात् जैसे गोत्व जाति इन्द्रिय से, ग्रहण की जाती हैं, वैसे ही घटादि कार्य भी। घटादि के समान इन्द्रियग्राह्य होने पर भी सामान्य जाति नित्य हैं। इसलिए घटादि के दृष्टान्त से और कार्यत्व के हेतु से शब्द को अनित्य कहना सन्दिग्ध हैं। क्योंकि नित्य अनित्य के साधर्म्य से संशय उत्पन्न होता है। इसी को संशयसम प्रतिषेध कहते हैं।
अब इसका खण्डन करते हैं:-