DARSHAN
दर्शन शास्त्र : न्याय दर्शन
 
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सूत्र :प्रतिषेधानुपपत्तेश्च प्रतिषेद्धव्याप्रतिषेधः II5/1/20
सूत्र संख्या :20

व्याख्याकार : स्वामी दर्शनानन्द सरस्वती

अर्थ : जैसे तुम हेतु के तीनों काल में असिद्ध होने से उसका खण्डन करते हो, ऐसे ही तुम्हारे इस खण्डन का भी खण्डन किया जा सकता हैं, अर्थात् तुम हेतु के सिद्ध न होने से पहले उसका खण्डन करते हो यो पश्चात् या हेतु और तुम्हारा खण्डन दोनों एक साथ होंगे ? यदि कहो सिद्ध होने से पहले खण्डन करते हैं तो यह बिल्कुल असंगत हैं, क्योंकि जो वस्तु मौजूद होती है, उसी का खण्डन किया जाता है और जो वस्तु ही नहीं, उसका खण्डन कैसा ? यदि कहो कि हम सिद्ध होने के पश्चात् खण्डन करते हैं तो जब हेतु सिद्ध हो गया तो तुम्हारे खण्डन करने से क्या होता है ? और यदि कहो कि हेतु और हमारा खण्डन दोनों साथ-साथ रहेंगे तो यह हो नहीं सकता। दिन और रात एक साथ नहीं रह सकते। अतएव अहेतुसम प्रतिषेध अयुक्त है। अब अर्थापत्तिसम का लक्षण कहते हैं:-

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