सूत्र :अर्थापत्तितः प्रतिपक्षसिद्धेरर्थापत्तिसमः II5/1/21
सूत्र संख्या :21
व्याख्याकार : स्वामी दर्शनानन्द सरस्वती
अर्थ : एक बात के कहने से दूसरी बात जो स्वंयमेव जानी जाती हैं, उसे अर्थापत्ति कहते है। जहां इस अर्थापत्ति से प्रतिपक्ष की सिद्धि होती है उसे अर्थापत्तिसम दोष कहते है। जैसे कोई कहे कि उत्पन्न होने से शब्द अनित्य है। इस पर दूसरा कहता है कि स्पर्श रहित होने से शब्द नित्य है। अर्थात् जब घट के समान उत्पन्न होने से शब्द अनित्य है तो अर्थापत्ति से यह जाना गया कि आकाश के समान अस्पृश्य होने से शब्द नित्य है।
अब इसका खण्डन करते हैं:-