सूत्र :अनुक्त-स्यार्थापत्तेः पक्षहानेरुपपत्तिरनुक्तत्वादनैकान्तिकत्वाच्चार्थापत्तेः II5/1/22
सूत्र संख्या :22
व्याख्याकार : स्वामी दर्शनानन्द सरस्वती
अर्थ : अर्थापत्ति के अनुक्त और अनेकान्तिक होने से अर्थापत्तिसम दोष खण्डित हो जाता है, क्योंकि उक्त से अनुक्त का खण्डन भी सामथ्र्य के अनुसार होता है। जैसे यह कहा जावे कि मनुष्य प्राणी है, तो इस कहने से यह आशय नहीं निकलता कि मनुष्य के सिवाय और कोई प्राणी नहीं। ऐसे ही उत्पन्न होने से शब्द अनित्य है इसका अर्थापत्ति से यह तात्पर्य निकालना कि अस्पष्ट होने से शब्द नित्य हैं, सर्वथा असंगत हैं। अतएव अर्थापत्ति के अनुक्त और अनेकान्तिक होने से अर्घापत्तिसम दोष ठीक नहीं। अब अविशेषसम का लक्षण कहते है।:-