DARSHAN
दर्शन शास्त्र : न्याय दर्शन
 
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Darshan

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सूत्र :दृष्टान्तस्य कारणानपदेशात्प्रत्यवस्थानाच्च प्रतिदृष्टान्तेन प्रसङ्गप्रतिदृष्टान्तसमौ प्रदीपोपादानप्रसङ्गविनिवृत्तिवत्तद्विनिवृत्तिः II5/1/9
सूत्र संख्या :9

व्याख्याकार : स्वामी दर्शनानन्द सरस्वती

अर्थ : कारण का कारण और दृष्टांत का दृष्टांत नहीं होता, जब कारण के कारण या दृष्टांत के दृष्टांत की जिज्ञासा की जाती है, तब फिर उनके कारण और दृष्टांत का भी प्रंसग उत्पन्न होता है, इसी को प्रसंगसम दोष कहते है। और प्रत्येक दृष्टांत में इस दोष की सम्भावना करना प्रतिदृष्टांतसम दोष कहलाता है। जैसे कहा जावे कि कियावान् होने से वायु चलता है इस पर प्रतिवादी कहे कि वायु कियावान क्यों है ? यह प्रसंगसम का उदाहरण है। दूसरे प्रतिदृष्टांतसम का उदाहरण यह है। यदि घट के दृष्टांत से शब्द अनित्य है तो आकाश के दृष्टांत से नित्य है। अब प्रसंगसम को खण्डन करते हैं:-

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