सूत्र :घटादिनिष्पत्तिदर्शनात्पीडने चाव्यभिचारादप्रतिषेधः II5/1/8
सूत्र संख्या :8
व्याख्याकार : स्वामी दर्शनानन्द सरस्वती
अर्थ : उक्त दोनों प्रकार के खण्डन ठीक नहीं, क्योंकि कहीं हेतु की प्राप्ति से और कहीं अप्राप्ति से भी साध्य की सिद्धि प्रत्यक्ष देखने में आती हैं। घटादि कुम्हार, चाक और मिट्टी के मिलने से सिद्ध होते है। अभिचार (साजिस) आदि बिना मिले ही गुप्त रीति पर अपना प्रभाव दिखलाते हैं। इसलिए प्राप्तिसम और अप्राप्तिसम प्रतिषेध अयुक्त है।
अब प्रसगंसम और प्रतिदृष्टांतसम का लक्षण कहते हैं:-