DARSHAN
दर्शन शास्त्र : न्याय दर्शन
 
Language

Darshan

Adhya

Anhwik

Shlok

सूत्र :न निष्पन्नावश्यम्भावित्वात् II4/2/44
सूत्र संख्या :44

व्याख्याकार : स्वामी दर्शनानन्द सरस्वती

अर्थ : मुक्तावस्था में स्थूल शरीर के न रहने से बाह्य विषयों का ग्रहण नहीं हो सकता क्योंकि बाह्य विषयों के ज्ञान के लिए चेष्टा और इन्द्रियों के आश्रय शरीर का होना आवश्यक है। परन्तु मुक्तावस्था में न तो शरीर ही रता है न इन्द्रिय, इसलिए उनसे उत्पन्न होने वाला विषय ज्ञान कैसे हो सकता है? इसी की पुष्टि करते हैं-

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