सूत्र :तं शिष्यगुरुसब्रह्मचारिविशिष्टश्रेयोऽर्थि-भिरनसूयुभिरभ्युपेयात् II4/2/48
सूत्र संख्या :48
व्याख्याकार : स्वामी दर्शनानन्द सरस्वती
अर्थ : प्रथम तो अपने से अधिक विद्वान् गुरू से संवाद करना चाहिए, यह संवाद शास्त्रार्थ करना चाहिए। और उत्तर पा रधृष्टता या हठ नहीं करना चाहिए। यदि कुछ सन्देह रहे तो नम्र भाव से विनीत शब्दों में उसे निवेदन करना चाहिए। गुरू के अतिरिक्त ज्ञान की दृढ़ता के लिए अपने समाध्यायी तथा योग्य शिष्यों के साथ भी प्रेमपूर्वक संवाद करना चाहिए। इस प्रकार संवाद करने से तत्त्वज्ञान की प्राप्ति में सहायता मिलती है। यदि अपने से अधिक विद्वान न मिले तो क्या करेः