सूत्र :प्रतिपक्षहीनमपि वा प्रयोजनार्थमर्थित्वे II4/2/49
सूत्र संख्या :49
व्याख्याकार : स्वामी दर्शनानन्द सरस्वती
अर्थ : जिसको तत्त्वज्ञान की जिज्ञासा हो, यदि उसे पूरा तत्त्वज्ञानी गुरू न मिले तो दूसरे विचारशील पुरूषों से भी प्रतिपक्षहीन होकर अर्थात् अपना कोई पक्ष स्थापन न करके संवाद करे। जिज्ञासुको आग्रह न करना चाहिए, क्योंकि आग्रही मनुष्य सत्य को प्राप्त नहीं हो सकता। यदि तत्त्वज्ञान के लिए वाद ही उपयुक्त है तो जल्प और वितण्डा का उपयोग किस अवसर पर करना चाहिएः-