सूत्र :समाधिविशेषाभ्यासात् II4/2/38
सूत्र संख्या :38
व्याख्याकार : स्वामी दर्शनानन्द सरस्वती
अर्थ : इन्द्रियों के अर्थों से मन को रोक कर आनन्दघन परमात्मा में लगाना समाधि है, और समाधि के अभ्यास करने से तत्त्वज्ञान होता हैं। तत्त्वज्ञान के होने में मन की चंचलता सबसे बड़ी रूकावट हैं और जब तक इन्द्रियों का विषयों के साथ सम्बन्ध रहता है, तब तक मन स्थिर नहीं होता। जब समाधि के अभ्यास से मन को विषयों से रोका जाता है, तब तत्त्वज्ञान की उत्पत्ति होती है। वादी शंका करता हैं-