सूत्र :त-त्त्वाध्यवसायसंरक्षणार्थं जल्पवितण्डे वीजप्ररोहसंरक्षणार्थं कण्टकशाखा-वरणवत् II4/2/50
सूत्र संख्या :50
व्याख्याकार : स्वामी दर्शनानन्द सरस्वती
अर्थ : जिस प्रकार बीज बोने वाले का प्रयोजन केवल अन्न और फल से होता है, परन्तु उसकी रक्षा के लिए खेत के चारों तरफ उसे कांटों की बाढ़ लगानी पड़ती है, जिससे दुष्ट जन्तु उस अन्न या फल को जो उसका अभिप्रेत है, नष्ट न कर सकें। इसी न प्रकार संवाद का तात्पर्य केवल तत्त्वज्ञान से है किन्तु हेतुके और नासिक लोग अपने कुतर्क और हेत्वाभासों से तत्त्वज्ञान को जटिल और संशयास्पद बना देते हैं उनसे उसकी रक्षा करने के लिए कभी-कभी जल्प और वितण्डा की भी आवश्यकता होती है। अतएव अपने अवसर पर ही इनका प्रयोग करना चाहिए, न कि सर्वदा।
व्याख्या :
इति चुतुर्थाध्यायस्य द्वितीयमान्हिकम्।
चतुर्थाध्यायः समाप्तः।