सूत्र :मायागन्धर्वनगरमृगतृष्णिकावद्वा II4/2/32
सूत्र संख्या :32
व्याख्याकार : स्वामी दर्शनानन्द सरस्वती
अर्थ : या जैसे भ्रम से मायिक गन्धर्वनगर या मगधर्वनगर या मगतृष्णा का मिथ्या ज्ञान होता है, ऐसे ही प्रमाण और प्रमेय का ज्ञान भी कल्पित और वस्तुशून्य है। इसका उत्तरः