सूत्र :तत्त्वप्रधानभेदाच्च मिथ्याबुद्धेर्द्वैविध्योपपत्तिः II4/2/37
सूत्र संख्या :37
व्याख्याकार : स्वामी दर्शनानन्द सरस्वती
अर्थ : जो वस्तु हो उसको तत्तव कहते हैं और जिसका उसमें ज्ञान हो उसे प्रधान कहते हैं। तत्त्व और प्रधान इन दो भेदों के होने से मिथ्या बुद्धि दो प्रकार की है। जैसे रस्सी जो एक वस्तु है, तत्त्व है और सर्प जिसका उसमें ज्ञान होता है, प्रधान है। यही कारण है कि रस्सी में सर्प का ज्ञान होता है। यद्यपि तत्त्वज्ञान के होने पर मिथ्या ज्ञान की निवृत्ति हो जाती है, तथापि जब तक तत्त्वज्ञान नहीं होता, तब तक मिथ्या ज्ञान की सत्ता (चाहे वह भ्रमात्मक ही हो) माननी पड़ती है। तत्त्वज्ञान की उत्पत्ति किस प्रकार होती है, यह दिखलाते हैं-