सूत्र :स्वप्नविषयाभिमानवदयं प्रमाणप्रमेयाभिमानः II4/2/31
सूत्र संख्या :31
व्याख्याकार : स्वामी दर्शनानन्द सरस्वती
अर्थ : जैसे स्वप्न के प्रमेय पदार्थ कल्पित होते हैं, परन्तु उनका अभिमान होता है, ऐसे ही प्रमाण और प्रमेय का अभिमान भी कल्पित है, वास्तव में कुछ नहीं। इस पर एक दृष्टांत और देते हैं-