सूत्र :तदाश्रयत्वादपृथग्ग्रहणम् II4/2/28
सूत्र संख्या :28
व्याख्याकार : स्वामी दर्शनानन्द सरस्वती
अर्थ : सूत्र की तारें जिनसे कपड़ा बनता है, कपड़े का आश्रय है और वही उसकी उत्पत्ति का कारण भी हैं। आश्रित सदा अपने आश्रय के अधीन रहता हैं, इसलिए कपड़े का सूत के तारों से पृथक ग्रहण नहीं होता, किन्तु उसके साथ ही उसका भी ग्रहण किया जाता है। परन्तु यह आश्रय आश्रित का भेद बुद्धि से जाना जाता है, इसलिए वे एक नहीं हैं। जिन पदार्थों में आश्रय और आश्रित सम्बन्ध नहीं हहै, उसका पृथक ग्रहण होता है। फिर इसी अर्थ की पुष्टि करते हैं-