सूत्र :प्रमा-णानुपपत्त्युपपत्तिभ्याम् II4/2/30
सूत्र संख्या :30
व्याख्याकार : स्वामी दर्शनानन्द सरस्वती
अर्थ : पदार्थों को शून्य या कल्पित मानना ठीक नहीं, क्योंकि जिस प्रमाण से तुम शून्य या कल्पित सिद्ध करोगे, उसकी सत्ता तो माननी ही पड़ेगी, उसका भाव मानने से फिर सबका अभाव क्योंकर सिद्ध होगा। एक वस्तु की भी होने से सबका शून्य या कल्पित होना न रहेगा। यदि बिना प्रमाण के ही सबको शून्य या कल्पित माना जाये तो इसे कोई बुद्धिमान स्वीकार न करेगा क्योंकि बिना प्रमाण के किसी वस्तु की सिद्धि नहीं होती। वादी शंका करता हैः