DARSHAN
दर्शन शास्त्र : न्याय दर्शन
 
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सूत्र :अनवस्थाकारित्वा-दनवस्थानुपपत्तेश्चाप्रतिषेधः II4/2/25
सूत्र संख्या :25

व्याख्याकार : स्वामी दर्शनानन्द सरस्वती

अर्थ : जो पदार्थ सावयव है और जिसमें संयोग होता है, वह आकारवान् और अनित्य है। दोनों हेतु अनवस्था दोष युक्त हैं। जिसकी कोई स्थिति न हो, उसे अनवस्था कहते हैं। यदि परमाणु को परिच्छिन्न ने माना जावे तो उसमें अनवस्था दोष आवेगा। क्योंकि अपरिच्छिन्न होने से उसके विभाग होते ही चले जावेंगे, कहीं पर उनकी समाप्ति न होगी। इसलिए अनवस्थिति होने से यह हेतु माननीय नहीं। अब विज्ञानवाद अर्थात् सब पदार्थ भावाश्रिम हैं, अर्थात् बुद्धि में ही ठहरे हुए हैं, वास्तव में कुछ हनीं, की परीक्षा की जाती हैं-

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