सूत्र :मूर्तिमतां च संस्थानोपपत्तेरवयवसद्भावः II4/2/23
सूत्र संख्या :23
व्याख्याकार : स्वामी दर्शनानन्द सरस्वती
अर्थ : जितने परिच्छिन्न और स्पर्शवाम् द्रव्य हैं, उनका कुछ न कुछ आकार देखने में आता है, चाहे व त्रिभुज चतुभुँज हो या वत्तुँलाकर या पिण्डाकार इत्यादि। और जिसका आकार होता है, वह संयुक्त है। परमाणु भी परिच्छिन्न और स्पर्शवान् है इसलिए वह निरवयव नहीं हो सकता। इसी की पुष्टि करते हैं-