DARSHAN
दर्शन शास्त्र : न्याय दर्शन
 
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सूत्र :अव्यूहाविष्टम्भविभुत्वानि चाकाशधर्माः II4/2/22
सूत्र संख्या :22

व्याख्याकार : स्वामी दर्शनानन्द सरस्वती

अर्थ : किसी वेग से जाते हुए पदार्थ का किसी अन्य पदार्थ से टक्कर खाकर लौंने का नाम ब्यूह और उसका रूक जाना विष्टम्भ कहलाता है, ये दोनों धर्म सावयव पदार्थों में होते हैं। आकाश निरवयव है, इसलिए उससे मिलकर न तो कोई पदार्थ लौटसकता है और न रूक ही सकता है। ब्यूह और विष्टम्भ न होने से ही आकाश विभु है अर्थात् उसको गति का कहीं अवरोध नहीं। अतएव आकाश के व्यापक होने से परमाणुओं के निरवयव और नित्य होने में कोई बाधा नहीं हो सकती। अब वादी फिर शंका करता हैः-

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