सूत्र :न चावयव्यवयवाः II4/2/10
सूत्र संख्या :10
व्याख्याकार : स्वामी दर्शनानन्द सरस्वती
अर्थ : यदि यह मान लिया जाये कि अवयवों और अवयवी में भेद नहीं है, अवयव ही अवयवी हैं, तो यह हो नहीं सकता क्योंकि तन्तु को वस्त्र और स्तम्भ को गृह कोई नहीं मान सकता। अब सूत्रकार इन आक्षेपों का उत्तर देते हैं-