सूत्र :पृथक्चावयवेभ्योऽवृत्तेः II4/2/9
सूत्र संख्या :9
व्याख्याकार : स्वामी दर्शनानन्द सरस्वती
अर्थ : यदि यह मान लिया जावे कि अवयवों से अवयवी भिन्न है, वह विभक्त होकर एक-एक अवयव में रहता है तो उसका अवयवों से भिन्न होना सिद्ध नहीं होता। इसलिए अवयवों से भिन्न कोई अवयवी नहीं है। फिर आक्षेप की पुष्टि करते हैं-