DARSHAN
दर्शन शास्त्र : न्याय दर्शन
 
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सूत्र :स्वविषयानतिक्रमेणेन्द्रियस्य पटु-मन्दभावाद्विषयग्रहणस्य तथाभावो नाविषये प्रवृत्तिः II4/2/14
सूत्र संख्या :14

व्याख्याकार : स्वामी दर्शनानन्द सरस्वती

अर्थ : तीव्र होने की दशा में इन्द्रिय अपने विषय को शीघ्र ग्रहण करते हैं मन्द होने पर देर से ग्रहण होता है। परन्तु इन्द्रियों की यह तरव्रता और मन्दता केवल अपने विषयों में होती है, दूसरे इन्द्रिय के विषय में नहीं। तीव्र दृष्टि पुरूष रूप को ग्रहण करता है, गन्ध, रसादि को नही। परमाणु सूक्ष्म होने से किसी इन्द्रिय का विषय नहीं। इसलिए बिना सड्.घात के पृथक-पृथक एक-एक अणु इन्द्रिय का विषय नहीं। यदि अवयवी को अवयवों के सड्.घात से भिन्न कोई वस्तु न माना जावे तो अवयवी का ग्रहण भी इन्द्रियों से न होना चाहिये। क्योंकि जब एक अणु निरवयव है, तो उसका समुदाय सावयव नहीं हो सकता। अतएव अवयवी अवयव समुदाय से भिन्न है और वही अवयव समुदाय को इन्द्रियग्राह्य बनाता है। इस पर आक्षेप:-

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