सूत्र :दोषनिमित्तं रूपादयो विषयाः संकल्पकृताः II4/2/2
सूत्र संख्या :2
व्याख्याकार : स्वामी दर्शनानन्द सरस्वती
अर्थ : रूपादि विषय ही संकल्प के होने से रागादि दोषों के उत्पन्न होने का कारण होते हैं, अर्थात् अनुकूल विषयों से राग करता है, प्रतिकूल से द्वेष। जब तक मनुष्य इन रूपादि बाह्य विषयों से उपरत नहीं होता, तब तक अहंकारादि आंतरिक दोष मिट नहीं सकते। इसलिए शुभ संस्कारों से पहले संकल्प को शुद्ध करना चाहिए, क्योंकि बिना संकल्पशुद्धि के बाह्य विषयों से उपराग नहीं होता और बिना बाह्य विषयों से उपराग हुए अहंकारादि आध्यात्मिक शत्रुओं का नाश नहीं हो सकता। अब दोष का विशेष कारण बतलाते हैं-