DARSHAN
दर्शन शास्त्र : न्याय दर्शन
 
Language

Darshan

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सूत्र :प्रागुत्पत्तेरभावानित्य-त्ववत्स्वाभाविकेऽप्यनित्यत्वम् II4/1/66
सूत्र संख्या :66

व्याख्याकार : स्वामी दर्शनानन्द सरस्वती

अर्थ : किसी पदार्थ की उत्पत्ति से पहले उसका अभाव अनित्य होता है, अर्थात् किसी वस्तु के उत्पन्न होने से पूर्व जो उसका अभाव है, उसकी उत्पत्ति को कोई कारण और समय नहीं। परन्तु उसका नाश उस वस्तु के उत्पन्न होने से हो जाता है, अर्थात् अब वह अभाव नहीं रहताः ऐसे ही क्लेशस्वाभाविक होने पर भी नाश हो सकता है। इससे मुक्ति का होना सम्भव है। वादी फिर कहता हैं-