सूत्र :ऋणक्लेशप्रवृत्त्यनुबन्धा-दपवर्गाभावः II4/1/59
सूत्र संख्या :59
व्याख्याकार : स्वामी दर्शनानन्द सरस्वती
अर्थ : ऋण, क्लेश और प्रवृत्ति के लगाव से मोक्ष सिद्ध नहीं होता, प्रत्येक मनुष्य के ऊपर तीन ऋण होते हैं, (1) देव ऋण (2) ऋषि ऋण (3) पितृ ऋण जब तक मनुष्य इन तीनों ऋणों को नहीं चुका लेता, मोक्ष का अधिकारी नहीं हो सकता, यह शास्त्र की आज्ञा है। अपने अल्प जीवन में मनुष्य इन्ही ऋणों को नहीं चुका सकता, फिर उसे मोक्ष के लिए समय मिल सकता है। अविद्यादि क्लेशों के लगाव से भी मोक्ष की सम्भावना नहीं हो सकती क्योंकि मनुष्य यावज्जीवन क्लेशों में बन्धा हुआ रहता है मरणान्तर भी क्लेश संस्कारों के अनुबन्ध से जन्म लेता है, तब मोक्ष साधन के लिए समय कहां रहा? प्रवृत्ति यावज्जीवन मन, वाणी और शरीर से कुछ न कुछ कर्म करता हुआ धर्माऽधर्म का उपर्जन करता रहता है, फिर मोक्ष के लिए अवसर कहां ?