सूत्र :न सुखस्याप्यान्तरालनिष्पत्तेः II4/1/56
सूत्र संख्या :56
व्याख्याकार : स्वामी दर्शनानन्द सरस्वती
अर्थ : मनुष्य को इस जीवन में केवल दुख ही नहीं है, किन्तु उसमें सुख भी मिला हुआ है क्योंकि दुःख-सुख दोनों सापेक्ष्य हैं। दुःख के पश्चात् सुख अवश्य होता है और यदि दुःख न हो तो किसी को सुख का अनुभव ही हनीं हो सकता। अतएव सबको दुःख रूप बतलाना ठीक नहीं। अब इसका उत्तर नहीं।