सूत्र :तत्सम्बन्धात्फलनिष्प-त्तेस्तेषु फलवदुपचारः II4/1/54
सूत्र संख्या :54
व्याख्याकार : स्वामी दर्शनानन्द सरस्वती
अर्थ : पुत्रादि के सम्बन्ध से सुखादि की उत्पत्ति होती है, इसलिए पुत्रादि में फल का उपचार माना गया हैं। जैसे उपनिषदों में अन्न को प्राण कहा गया है वास्तव में अन्न प्राण नहीं, किन्तु प्राण को पोशक होने से उसी का अन्न कहा गया हैं इसी प्रकार पुत्र सुख नहीं, किन्तु सुख का बढ़ाने वाला है, इसलिए उसमें फल का उपचार किया गया है। फल की परीक्षा समाप्त हुई। अब दुःख की परीक्षा की जाती हैः