DARSHAN
दर्शन शास्त्र : न्याय दर्शन
 
Language

Darshan

Adhya

Anhwik

Shlok

सूत्र :आश्रयव्यतिरे-काद्वृक्षफलोत्पत्तिवदित्यहेतुः II4/1/51
सूत्र संख्या :51

व्याख्याकार : स्वामी दर्शनानन्द सरस्वती

अर्थ : जिस शरीर ने कर्म किया हैं, उसके नाश हो जाने पर फल की प्राप्ति किसको होगी? इसमें वृक्ष का जो दृष्टांत दिया गया है, वह ठीक नहीं, क्योंकि जल सींचना औश्र वृक्ष लाना ये दोनों बातें एक ही वुक्ष के आश्रित हैं, अर्थात् वृक्ष में पानी सींचा जाता है, वही कालान्तर में फल लाता है, परन्तु दृष्टांत में वह बात नहीं है, वहां जिस शरीर से कर्म किया जाता है,वह तो यही नष्ट हो जाता है, दूसरा शरीर उसके किये हुए कर्मों के फल को भोगता है, इसलिए आश्रयभेद होने से यह दृष्टांत ठीक नही।