सूत्र :बुद्धिसिद्धं तु तदसत् II4/1/50
सूत्र संख्या :50
व्याख्याकार : स्वामी दर्शनानन्द सरस्वती
अर्थ : बुद्धि और प्रमाण से कारण का नित होना और उससे कार्य का उत्पन्न होना सिद्ध होता है, इसलिए प्रत्येक पदार्थ कार्यरूप में आने से पहले इसत् है। प्रत्येक कारण में अपने अनुरूप ही कार्य उत्पन्न करने की शक्ति होती है। यदि उत्पत्ति से पहले भी उसका भाव माना जाये तो फिर उत्पत्ति का होना नहीं बन सकता। क्योंकि जुलाहा यह जान कर ही कपड़ा नहीं है, सूत से कपड़ा बनाता है, यदि बनने से पहले भी कपड़ा मौजूद हो तो फिर उसका बनाना कैसा? इसलिए सत् कारण से असत् कार्य की उत्पत्ति होती है। यही सिद्धांत ठीक है। वादी शंका करता हैः