सूत्र :कालान्तरेणानिष्पत्तिर्हेतुविनाशात् II4/1/46
सूत्र संख्या :46
व्याख्याकार : स्वामी दर्शनानन्द सरस्वती
अर्थ : फल के लिए जो यज्ञादि कर्म किये जाते हैं, वे वहां ही नष्ट हो जाते हैं, जब वे आप ही मिट जाते हैं, तो कालान्तर या जन्मान्तर में क्या फल उत्पन्न करेंगे? क्योंकि नष्ट कारण से कोई उत्पन्न नहीं हो सकता, अतएव जन्मान्तर में कर्मफल का मानना ठीक नहीं। अब इसका उत्तर देते हैः